Thursday 10 June 2021

कहानी ---- खरगोश और हाथी कक्षा 5

 एक जंगल में एक से एक सरोवर था। सरोवर के किनारेेेे गीली जमीन थी। वहाँ बहुत से खरगोश रहते थे। 
   खरगोशों के बिल जमीन के अंदर थे। वे दिन भर इधर-उधर कूदते रहते।
  नरम नरम घास खाते। रात को अपने घरों में सो जाते। वे सब बहुत प्रसन्न रहते थे।
    उसी जंगल में कुछ हाथी आ गए। हाथियों के झुंड में कुछ शरारती हाथी थे। वे अपनी सूंड से छोटे छोटे  पेड़ तोड़ देते। 
      पौधे कुचल देते। हाथियों के बच्चे खेल खेल में एक दूसरे से लड़ते। तभी एक छोटा हाथी नीचे होता, कभी दूसरा।
    हाथी पानी  से बहुत प्यार करते हैं। लहसुन से पानी भर भर कर नहाते। फिर सरोवर के किनारे एमपी में लौटते।
     नरम जमीन उनके भार से दब जाती। साथ ही कई खरगोश परिवार भी  दब जाते। इससे खरगोश बहुत दुखी थे।
   खरगोशों के सरदार ने एक उपाय सोचा। कुछ चुने हुए खरगोशों के साथ हाथियों के  सरदार के पास गया। कुछ दूरी पर बैठ खरगोशों के सरदार ने अपने अगले पांव उठाए। उसने उन्हें हाथ जोड़कर नमस्कार किया। हाथी ने सूंड उठाकर नमस्कार का  उत्तर दिया।
        खरगोश सरदार बोला, हम चांद के भांजे हैं। चांद में आप हमारे भाई बंधुओं को देख सकते हैं। हमारे कुछ भाई धरती पर रहने आए हैं। मामा रोज सरोवर में आते हैं, हमसे मिलने ।
     मैं आपसे नाराज है। हाथी बोला, " क्या? क्यों नाराज है? हमने क्या किया है?
        खरगोश बोला," सरोवर के समीप नरम मिट्टी में सुराख कर हमने अपने घर बनाए हैं। आपके आने से सुराख दब गए जिससे चंदामामा के बहुत- से भांजे दब गए। इसलिए वे आपसे बहुत नाराज है।
      खरगोश आगे बोला, " वे रात को सरोवर में आएंगे और उन्हें यह देख कर अच्छा नहीं लगेगा। "
     रात हुई। पूर्णिमास का चांद निकला। तेज थी। सरोवर में हल्की हल्की लहरें उठरही थी। चांद लहरों के साथ - साथ ऊपर नीचे हो रहा था।
     हाथी और खरगोश वहाँ पहुंच गए। खरगोश बोला, " देखिए महाराज, चंदा मामा  गुस्से से कांप रहे हैं। आप जल्दी यहां से दूर चले जाए।लगता है,मामा बहुत नाराज हो रहे हैं। "
    हाथियों के सरदार ने अपने झुंड की तरफ देखा। सभी डर गए थे। सरदार ने अपनी सूंड ऊपर उठाई। सभी हाथियों ने ऐसा ही किया। अब सरदार बोला, चमकते हुए चांद को हमारा नमस्कार। हम अपनी गलती मानते हुए आपसे क्षमा मांगते हैं। आप हमें क्षमा करें। हम अभी दूसरे जंगल में चले जाते हैं। अब ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे दूसरों को तकलीफ हो।

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