Tuesday, 15 June 2021

ईदगाह रमजान के पूरे 30 रोजों के बाद आज ईद आई है। कितना मनोहर कितना सुहावना प्रभाव है आज का सूर्य की देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है,गांव में कितने हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियां हो रही है। किसी के कुरते में बटन नहीं है,पड़ोस के घर में सुई धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, उन में तेल डालने के लिए तेली के पास भागा जाता है। जल्दी-जल्दी बैलो में पानी पानी दे दे। ईदगाह से लौटते लौटते दोपहर हो जाएगी। 3 कोस का पैदल रास्ता, पीर सैकड़ों आदमियों से मिलना भेटना। दोपहर के पहले लौटना असंभव है। लड़के सबसे ज्यादा प्रसन्न है। किसी ने एक रोजा रखा है,वह भी दोपहर तक किसी नहीं वह भी नहीं, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी उनके इससे की चीज है। रोजे बड़े बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है रोहित का नाम रटते थे आज वह आ गई अब जल्दी पड़ी है कि लोग इसका क्यों नहीं चलते। उनकी अपनी जेब में तो कुबेर का धन भरा हुआ है।बार-बार जेब में से अपना खजाना निकाल कर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख देते हैं। महमूद गिनता है, एक -दो -दस -बारह उसके पास बारह पैसे है। मोहसिन के पास एक -दो -आठ -नौ -पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनत पैसों से अनगिनत चीजें लाएंगे। खिलौना,मिठाइयां, गेंद और जाने क्या-क्या।और सबसे ज्यादा प्रसन्न है हामिद। गरीब सूरत, दुबला,- पतला लड़का जिसका बाप गत वर्ष हैजै की भेंट हो गया।फिर एक दिन माँ भी मर गई, अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में है और उतना ही प्रसन्न हैं। हमीद के पाँव में जूते नहीं है, सिर पर एक पुरानी टोपी है, जिसका गोटा काला पड़ गया है। फिर भी वह प्रसन्न है। अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है।आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं।.अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था इस निगोड़ी को। अमीना का दिल कचोट रहा है। गांव में बच्चे अपने अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद का बाप अमीना के सिवाय और कौन है? उसे कैसे अकेले जाने दे? उस भीड़ भाड़ में बच्चा कहीं खो गया तो क्या होगा? नहीं, अमीना उसे यो न जाने देगी। नन्ही सी जान, तीन कोस चलेगा कैसे? पैरों में छाले पड़ जाएंगे। जूते भी तो नहीं है। कुल दो आने पैसे बच रहे हैं । तीन पैसे हामिद के जेब में, अमीना के बटुए में। यही तो बिसात है और ईद का त्यौहार। अल्लाह ही बेड़ा पार लगाए। पर जाकर दादी से कहता है,-" तुम डरना नहीं अम्मा, मैं सबसे पहले आऊंगा।" गांव से मेला चला और बच्चों के साथ अमित भी जा रहा था। कभी दौड़ कर आगे निकल जाता फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथ वालों का इंतजार करता।अमित के पैरों में तो जैसे पर लग गए हैं। वह कभी थक सकता था! बड़ी-बड़ी इमारत की आने लगी।यह अदालत है, यह कॉलेज है,यह कलाघर है,आगे चले। हल वाइयों की दुकानें शुरू हुई। आज खूब सजी हुई थी। कितनी मिठाइयाँ कौन खाता है? देखो न, एक एक दुकान पर मनो होगी। सहसा ईदगाह नजर आई, इमली के घने वृक्षों की छाया है, नीचे पक्का फर्श है, उस पर जाजम बिछी हुई है। रोजेदारों की पंक्तियां एक के पीछे एक न जाने कहाँ तक चली गई है। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इन ग्रामीणों ने वज़ू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गए। कितना सुंदर संचालन है, इतनी सुंदर व्यवस्था। हजारों सर एक साथ सीजदे में झुक जाते हैं, फिर एक साथ खड़े हो जाते हैं। मानव भ्रातृत्व का एक सूत्र समस्त आत्माओं को एक कड़ी में पिरोए हुए हैं। नमाज खत्म हो गई लोग आपस में गले मिल रहे हैं। मिठाइयाँ और खिलौनों की दुकानों पर धावा होता है। ग्रामीणों का यह दल इस विषय में बालकों से कम उत्साही नहीं है। यह देखो, हिंडोला है। एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान पर जाते हुए मालूम होता है, कभी जमीन पर गिरते हुए। यो चरखी है। लकड़ी के हाथी, घोड़े और ऊंट छड़ो से लटके हुए हैं। एक पैसा देकर बैठ जाओ और पचीस चककरो का मजा लो। महमूद, मोहसिन, नूरे और शम्मी इन घोड़ो पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा है। तीन पैसे तो उसके पास है अपने को उसका एक तिहाई जरा सा- चक्कर खाने के लिए नहीं दे सकता। सब चरखियो से उतरते हैं। खिलौने लेंगे।इधर दुकानों की कतार लगी हुई है। तरह-तरह के खिलौने है। सिपाही और गुजरिया, राजा और वकील, बिस्ती और धोबीन।वाह, लगता है अब बोलना ही चाहते हैं। महमूद सिपाही लेता है,खाकी वर्दी और लाल पगड़ीवाला कंधे पर बंदूक रखे हुए मालूम होता हैअभी कवायत किए चला आ रहा है। मोहसिन को भिस्ती पसंद आया।कमर की झुकी हुई, ऊपर मशक रखे हुए हैं। बस मस्त अब से पानी उड़ेलना ही चाहता है। नुरे को वकील से प्रेम है। काला चोगा,नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जंजीर,एक हाथ में कानून का पोथा लिए हुए।मालूम होता है अभी किसी अदालत से जीरह या बहस किए चले आ रहे हैं। यह सब दो-दो पैसों के खिलौने हैं। हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, इतने महँगे खिलौने कैसे ले ?खिलोना कहीं हाथ से छूट पड़े तो चूर -चूर हो जाए।जरा पानी पड़े तो सारा रंग धुल जाए। ऐसे खिलौने किस काम के? उन्हें लेकर वह क्या करेगा? खिलौने के बाद मिठाईयाँ आती है। किसीने रेवडियाँ ली है, किसी ने गुलाब -जामुन किसी ने सोहनहलवा। मजे से खा रहे हैं। हामिद बिरादरी से पृथक है। अभागे के पास तीन पैसे हैं। क्यों नहीं कुछ लेकर खाता! ललचाई आंखों से सब की ओर देखता है। मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीजों की है, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की। लड़कों के लिए यहां कोई आकर्षण नहीं है। वे सब आगे बढ़ जाते हैं। हामिद लोहे की दुकान पर रुक जाता है। कई चिमटे रखे हुए हैं उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है।तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाते हैं। दिल्ली जाकर दादी को दे तो प्रसन्न में होगी कि उनकी उंगलियां कभी ना जलेगी। घर में एक काम एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है, फिर तो खिलौना की और कोई आंख उठा कर नहीं देखता।या फिर घर पहुंचते-पहुंचते टूट फूट कर बर्बाद हो जाएंगे। चिंता कितने काम की चीज है।रोटी या तवे से उतार लो,चूले में सेंक लो। कोई आग माँगने आए तो चट -पट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्मा बेचारी को कहाँ फुरसत है कि बाजार जाए और इतने पैसे ही कहां मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती है। अमित के साथ ही आगे बढ़ गए है। सबील पर सब शरबत पी रहे हैं। देखो, सब कितने राज्य हैं। इतनी मिठाईयाँ ली, मुझे किसी ने एक भी न दी। उस पर कहते हैं मेरे साथ चलो। मेरा यह काम,करो मेरा वह काम करो। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो पूछूंगा। खाए मिठाइयाँ, आपका मुंह सडेगा, फोड़े -फुसियाँ निकलेगी, आपकी जबान चटोरी हो जाएगी। ऊपर से पैसा चुराएंगे और मार खाएंगे। अम्मा चिमटा देखकर मेरे हाथ से लेगी और कहेगी,-'मेरा बच्चा, अम्मा के लिए चिमटा लाया है। अच्छा लड़का है इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हे नहीं दुआएं देगा? बड़ों की दुआएं सिद्धि सोलह के दरबार में पहुंचती है और तुरंत सुनी जाती है। मेरे मेरे पास पैसे नहीं है तो क्या हुआ? मैं गरीब ही सही, किसी से कुछ मांगने तो नहीं जाता। उसने दुकानदार से पूछा "यह चिमटा कितने का है?" "छः पैसे लगेंगे।" हामिद का दिल बैठ गया। फिर भी बोला -" ठीक ठीक बताओ। "" ठीक ठीक पाँच पैसे लगेंगे। लेना है तो लो,नहीं तो चलते बनो। " अमित ने कलेजा मजबूत करके कहा, " तीन पैसे लोगे? " और वह आगे बढ़ गया ताकि दुकानदार की धुड़कियाँ ना सुने। लेकिन दुकानदार ने धुड़कियाँ नहीं दी। बुलाकर चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कंधे पर रखा, मानो बंदूक है।फिर शान से अकड़ता हुआ संगियो के पास गया। मोहसीन ने हंसकर कहा, " यह चिमटा क्यों लाया बुद्धू? इसका क्या करेगा? " हमीद ने चिमटे को जमीन पर पटक कर कहां हो - जरा अपना भिस्ती ते तो जमीन पर गिराओ, सारी पसलियाँ चूर -चूर हो जाए बच्चू की। महमूद बोला, " यह चिमटा कोई खिलोना है? " हामिद -" खिलौना क्यों नहीं है? अभी कंधे पर रखा बंदूक हो गई, हाथ में ले लिया फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूं तो इससे मंजीरे का काम ले सकता हूं। उल्टा जमा दो तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान नीकल जाए। तुम्हारे खिलौने कितना जोर लगाए मेरे चिमटे का बाल भी बांका नहीं कर सकते। बहादुर शेर हैं- मेरा चिमटा। " सम्मी ने खंजरी ली थी। प्रभावित होकर बोला,, " मेरी खंजरी से बदलोगे? दो आने की है। "हामिद ने खंजरी की और उपेक्षा से देखा। बोला, " मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खंजरी का पेट फाड़ डालें। बस, एक चमडे की झील्ली लगा दी, ढब ढब बोलने लगी। जरा सा पानी लग जाए तो खत्म हो जाए। मेरा बहादुर चिमटा आग में,पानी में, आंधी में तूफान में बराबर डटा रहेगा। " चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, लेकिन तब पैसे किसके पास धरे है? फिर मेरे में बहुत दूर निकल आए हैं। खूब तेज हो रही है। घर पहुंचने की जल्दी है। बड़ो से जीद करे तो भी चिंमटा नहीं मिल सकता। हामिद है बड़ा चालाक।इसलिए उसने अपने पैसे बचा रखे थे। औरों ने तीन तीन , चार चार पैसे खर्च किए, और कोई काम की चीज ना ले सके। हामिद ने तीन पैसों में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनो का क्या भरोसा? तूट -फूट जाएंगे। हामिद का चिमटा बना रहेगा बरसो। मोहसिन ने कहा, " जरा अपना चिंमटा दो, हम भी देखें। तुम हमारा भिस्ती लेकर देखो। " महमूद और नूरे ने अपने-अपने खिलौने पेश किए। हामिद को इन शर्तों को मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी बारी से सब के हाथ में गया और उनके खिलौने बारी बारी से हामिद के हाथ में आए। कितनी खूबसूरत खिलौने थे। रास्ते में महमूद को भूख लगी। उसके बाप ने केले खाने के दिए। महमूद ने केवल हमीद को अपना साथी बनाया। उसके अन्य मित्रा मुंह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रभाव था। 11:00 बजे सारे गांव में हलचल मच गई। मेले वाले लौट आए, मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर किश्ती उसके हाथ से छीन लिया और मारे खुशी के कुछ नहीं तो मियां बिस्ती नीचे आ रहे और सुरलोक सिधारे। मियां नूरे के वकील का अंत इससे भी ज्यादा गौरवमय हुआ। वकील जमीन पर या ताक पर बैठ नहीं सकते। उनकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में दो खटिया गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरी पर कागज का एक कालीन बिछाया गया। वकील साहब राजा भोज की भांति सिहासन पर विराजे। नूरे ने उन्हें पंखा झलना शुरू किया। अदालतों में खसकी टट्टीयाँ और बिजली के पंखे होते हैं। क्या यहां मामूली पंखा भी ना हो? बांस का पंखा आया और नुरे हवा करने लगा। मालूम नहीं पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्यु लोक में आ रहे और उनका माटी का चोला माटी में मिल गया। फिर बड़े जोर शोर से मातम हुआ और वकील साहब की अस्थियां घूरे पर डाल दी गई। अब मियां हमीद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौडी और उसको गोद में उठाकर प्यार करने लगी। चाहता उसके हाथ में चिमटा देखकर बहुत चॉकी। बोली " यह चिमटा कहां से लाया? "" मैंने मोल लिया है। " कै पैसे में?" तीन पैसे दिए। " अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा भी समझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया ना पिया। लाया क्या, चिमटा!" सारे मेले में तुझे कोई और चीज ना मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया? " हामिद ने अपराधी भाव से कहा, " तुम्हारी उंगलियां तवे से जल जाती थी, इसलिए मैंने लिया। बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है। दूसरो को खिलोने लेते और मिठाई खाते देख कर इसका मन कितना ललचाया होगा। इतना जब्त ईससे हुआ कैसे? अमीना का मन गदगद हो गया। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएं देती जाती थी और उसकी आंखों से आंसू की बड़ी-बड़ी बुँदे गिरती जाती थी।

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