जामनगर
सीमेन्ट और नमक के उद्योग जामनगर में भी हैं। जामनगर की विशेषता उसके विकासशील वर्तमान और गौरवपूर्ण अतीत के कारण है। वैसे शहर बड़ा सुंदर है। इसे सौराष्ट्र का पेरिस कहते हैं। इसकी सुंदरता का यश जामनगर के राजा जाम रणजीत सिंह जी को देना चाहिए। सन् 1540 में जाड़ेजा राजपूत जाम रावल कच्छ से सौराष्ट्र में आए और यह नगरी बसाई। उन दिनों सौराष्ट्र में छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे। ऐसे ही एक नवानगर नाम के राज्य की राजधानी थी जामनगर। तब से लेकर स्वातंत्र्य प्राप्ति तक, लगभग चार सौ वर्ष तक, वह राजधानी बनी रही।
जैसा दूसरे कई शहरों में है उसी तरह जामनगर के भी चारों ओर किलाबंदी हैं। उसके कई दरवाज़े थे। सन् 1914 में जाम रणजीत सिंह जी के शासनकाल के दौरान शहर का चेहरा बदल गया। विशाल रास्ते बने, बड़े-बड़े चौराहे बने, प्रभावशाली इमारते बनीं। इन सबके कारण उसकी पेरिस से तुलना होती है।
जामनगर में पुरानी और नई परंपरा का सुंदर समन्वय है। सबसे पहले हम लखोटा महल और कोठा बैशन देखने चलते हैं। पुराने जामनगर शहर के मध्य में रणमल सरोवर है और उसके बीच में एक द्वीप है। इसी द्वीप पर लखोटा महल है। यह इमारत इतनी विशाल है कि वह किले का काम भी करती है। इसमें एक हज़ार सैनिक रह सकते हैं और किले की दीवार की आड़ से दुश्मनों के साथ लड़ सकते हैं इस महल में और एक खूबी थी। यहाँ एक पुराना कुआँ है और उसके बाहर की जमीन में एक छेद बनाया गया है। उस छेद
में फूक मारने से कुएँ से पानी बाहर आ जाता है। हैन करामात पड़े पर रहसी बांधकर कुएँ से पानी खीचने का परिश्रम ही नहीं करना पड़ता। अब तो इसे संग्रहालय बना दिया गया है। इसमें प्रवीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्धी तक के अत्यंत सुंदर शिल्प एवं चित्र प्रदर्शित किये गये हैं। पास की बरडी पहाड़ी के घुमली, चोटीला, पिंडारा, गधावी जैसे गाँवों से प्राप्त पुरातत्व की दृष्टि से मूल्यवान अवशेष इस संग्रहालय में रखे गये हैं। नर्मदा नदी की पाटी से पाषाण युग की कुछ वस्तुएँ मिली हैं, वे भी यहीं हैं। सौराष्ट्र के मिट्टी के पात्र, मूल पांडुलिपियाँ, तांबे की तकतियाँ और शिलालेख भी हैं।
रणमल सरोवर के किनारे कोठा बैशन में जामनगर का शासरंजाम रहता था। यह लखोटा जैसी ही प्राचीन इमारत है। इस शहर में मंदिर इतने अधिक है कि इसे "छोटा काशी" भी कहते हैं।
जामनगर के दर्शनीय स्थानों में एक है वहाँ का श्मशान। बात कुछ विचित्र लगती है। श्मशान में तो मुर्दे जलाये जाते हैं। उसके साथ भूतप्रेत की बातें जुड़ी होती हैं। बड़ी भयानक होगी वह जगह। लेकिन नहीं, जामनगर का श्मशान बहुत ही शांत और सुंदर स्थान है। एक मंदिर की तरह इसे देख लें।
श्मशान का नाम है माणेकभाई मुक्तिधाम। नाम भी कितना अच्छा है, "मुक्तिधाम"। मौत से डरने की कोई जरूरत नहीं है। यहाँ तो संसार से मुक्ति मिलती है। हाँ, यदि हमने सदाचार से जीवन बिताया है तब तो जन्म-मृत्यु के चक्र से ही मुक्ति मिल जाएगी। हिंदुओं में मुर्दे को जलाने के बाद नहाने का रिवाज होता है और श्मशान में पानी का प्रबंध न होने के कारण लोग अपने-अपने घर जाकर नहाते हैं। लेकिन जामनगर के इस मुक्तिधाम में नहाने के लिए गरम और ठंडे पानी का प्रबंध है। अब आगे चले।
सूर्य की किरणों से त्वचा के और शरीर के कई रोग दूर होते हैं, यह तो हम जानते हैं। उन किरणों में विटामिन "डी" होता है। जामनगर में एक "सोलेरियम" बनाया गया है। यही पर सूर्य किरणों से चिकित्सा होती है। यहाँ का आयुर्वेद विश्वविद्यालय भी मशहूर है। आयुर्वेद अनुसंधान केन्द्र में औषधीय
वनस्पतियों का बहुत बड़ा संग्रह है। अब हमें कच्छ चलना है। लेकिन एक बार यह जामनगर के बारे में छपा हुआ परचा देख लें। कुछ छूट तो नहीं गया?
चांदी बाजार में जैन मंदिर हैं, सुंदर शिल्प से सजा हुआ खंभालिया द्वार है, जाम साहब का विभा विलास महल और प्रताप विलास महल है। इन महलों का देखने के लिए खास अनुमति लेनी पड़ती है। इतना समय तो अपने पास नहीं है, इसलिए सब कुछ देखने का लोभ त्यागते हैं और आगे चलते हैं। जाते-जाते यहाँ की छुरी, सुपारी काटने की "सूडी", कुंकम और सुरमा तो लेना ही है। जामनगर का बंधेज भी बड़ा मशहूर है, पर मंहगा भी है इसलिए खरीदने की हिम्मत नहीं पड़ती। बंधेज कच्छ में भी मिल जाएगा, वहीं देख लेंगे। तो अब चलें।
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