Monday, 24 February 2025

सोमनाथ

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सोमनाथ

समुद्र किनारे पर ही आगे बढ़ते हैं। यह है प्रभास पाटण, जहाँ सोमनाथ का विख्यात मंदिर है। इस मंदिर का सात बार विनाश हुआ, सातों बार पुनर्निर्माण हुआ। पूरे भारत में शिव के बारह मंदिर सबसे पवित्र या महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। सोमनाथ का मंदिर उन्हीं में से एक है।

कहा जाता है कि स्वयं सोम अर्थात् चंद्र ने यह मंदिर बनवाया था। चंद्र देवता की कहानी इस मंदिर से जुड़ने के कारण वह और भी पवित्र माना जाता है।

अरबों ने जब मैत्रकों की राजधानी वलभीपुर पर हमला किया था तब सोमनाथ का मंदिर भी तोड़ा था। उन दिनों इस प्रकार का इतना बड़ा मंदिर सारे देश में केवल यहीं था। उस समय नागभट्ट ने उसे फिर से खड़ा किया। महमूद गजनवी ने भी मंदिर पर हमला किया था। पूरे सात दिन तक उसका सामना किया गया, लेकिन अंत में उसने मंदिर और मूर्ति, दोनों का खंडन किया और मंदिर का सारा सोना और जवाहरात ऊँटो पर लादकर ले गया। यह सन् 1026 की बात है। मंदिर का पुनः निर्माण हुआ। अलाउद्दीन खिलजी ने जब प्रभास पाटण पर कब्जा जमाया तब मंदिर और मूर्ति को ध्वंस कर डाला। फिर से मंदिर खड़ा हुआ। इस बार औरंगजेब के कहने पर उसको तोड़ा गया। इन्दौर की अहल्याबाई होलकर ने उन खड़हरों के पास नया मंदिर बनवाया। वर्तमान में जो मंदिर है उसे महाभेरु प्रसाद नाम दिया गया है। भारत स्वतंत्र होने के लगभग दस वर्ष बाद मंदिर 
की मूल योजना देखकर, उसी स्थान पर, जहाँ सबसे पहला मंदिर था, वहीं उसी प्रकार का मंदिर बनाया गया है।
सोमनाथ के पास भालका तीर्थ है। यहाँ एक पीपल के पेड़ के नीचे श्रीकृष्ण विषादमय मुद्रा में बैठे थे। उस समय किसी शिकारी ने दूर से उनको हिरन समझकर तौर मारा और उनकी मृत्यु हुई। पास के त्रिवेणी घाट पर जहाँ उनके अंतिम संस्कार किये गये थे, "देहोत्सर्ग" नाम का स्थान है। उसको भी प्रणाम कर लेते हैं। त्रिवेणी घाट पर तीन नदियाँ हैं हिरण्या, सरस्वती और कपिला। कितना आह्लादक संगम है यह। विद्वानों का कहना है कि यह घटना ईसा पूर्व 3185 की है। अर्थात् आज से पाँच हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी।

इसके निकट एक सूर्यमंदिर भी है, लेकिन बिलकुल खंडहर की हालत में पड़ा है।

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