द्वारका
श्रीकृष्ण गोकुल-वृंदावन छोड़कर मथुरा गये, यह बात तो समझी जा सकती है, क्योंकि गोकुल-वृंदावन उनकी क्रीड़ाभूमि थी, जबकि मथुरा कर्मभूमि थी। लेकिन मथुरा भी क्यों छोड़ दिया? कहानी इस प्रकार है:
श्रीकृष्ण गोकुल से मथुरा गये तब उन्होंने दुष्ट राजा कंस का वध किया। कंस श्रीकृष्ण के मामा भी थे। दुष्ट को तो दूर करना ही चाहिए, इसीलिए श्रीकृष्ण ने कंस को स्वर्ग पहुँचा दिया था। मथुरा के खाली सिंहासन पर कंस के वृद्ध पिता को बिठाया। कंस का ससुर जरासंघ बड़ा शक्तिशाली राजा था। वह कंस की तरह दुष्ट भी था। कंस की मृत्यु की खबर मिलते ही वह आगबबूला हो गया। पूरे जोश के साथ उसने मथुरा पर आक्रमण किया। कई लोगों को मार डाला। खूनखराबा करके चला गया। इस प्रकार वह बार-बार मथुरा पर हमला करता था और लोगों का संहार करता था। ऐसी परिस्थिति से दुःखी होकर श्रीकृष्ण ने सोचाः
"मेरे कारण ही लोगों को इतनी परेशानी झेलनी पड़ती है, इतने सारे लोगों की जान जाती है। मैं ही मथुरा छोड़कर कहीं दूर चला जाता हूँ।"
बस, फिर वे मथुरा छोड़कर, उस रणभूमि को छोड़कर सौराष्ट्र की ओर चल पड़े। रणभूमि छोड़ दी इसलिए श्रीकृष्ण का नाम रणछोड़जी पड़ गया।
हमारा गुजरात
के पश्चिम किनारे पर आ पहुंचे। यहाँ गोमती नदी का सागर से संगम होता है। यह स्थान श्रीकृष्ण को अच्छा लगा। यहीं पर उन्होंन बहुत लंबा रास्ता काटकर वे भारत द्वारिका नगरी बसाई। बहुत ही सुंदर नगरी थी वहां कई कवियों ने इसका वर्णन किया है। लेकिन यादवों के दिमाग पर सत्ता और धन का बुरा असर पड़ा। उनको शराब पीन है। लेकिन आदत पड़ गई। उनका व्यवहार, रहन-सहन बदल गया। श्रीकृष्ण ने उन्हें बहुत समझाया पर शराबी का दिमाग कहाँ काम करता है? उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी। आपस असलाहकार उन्होंने अपने हाथों ही अपना विनाश कर डाला। गुजराती में एक कहावत है कि "विनाशकाले विपरीत बुद्धि" अर्थात् जब मनुष्य का विनाश होना हो तब उसकी बुद्धि विपरीत हो जाती है। यादवों के किस्से में यही हुआ।
इस संहार से दुःखी होकर श्रीकृष्ण कुछ बचे हुए यादवों को लेकर तीर्थयात्रा करने निकले। प्रभास पाटण के उस सोमनाथ मंदिर में गये, जो हम भी देख चुके हैं। यादवों ने यहाँ समुद्र में स्नान किया। फिर दिमाग तो बिगड़ ही गया था इसलिए खूब शराब पी। शराब के नशे में लड़ाई शुरू हो गई। बचे हुए यादव इस आपसी लड़ाई में खत्म हो गये। इस प्रकार सारे यादव खत्म हो गये।
यह सब देखकर श्रीकृष्ण को बहुत दुःख हुआ। वे खिन्न मन से, एक पीपल के पेड के नीचे अपनी जीवनलीला समाप्त करने के लिए बैठ गये। उसी समय उन्हें शिकारी का तीर लगा और उनकी मृत्यु हुई।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण की विदा के साथ ही सोने की द्वारिका नगरी समुद्र में समा गई। बाद में यह नगरी फिर से बसी, फिर समुद्र में समा गई, ऐसा पाँच बार हुआ। आज जो द्वारका है, वह छठी बार बसी हुई एक नगरी है। इस प्रदेश में की गई खुदाई से जो अवशेष मिले हैं उन्हीं से इस बात का प्रमाण मिलता है।
द्वारका हमारे देश के चार मुख्य तीर्थस्थानों में से एक है। ये तीन हैं- बद्री-केदार, रामेश्वर और जगन्नाथपुरी।
द्वारका में सबसे बड़ा मंदिर रणछोड़रायजी का है। यही द्वारकाधीश मंदिर कहलाता है। कोई 2500 वर्ष पुराना यह मंदिर है। इस पाँच मंजिलों वाले मंदिर का शिखर बहुत ही ऊँचा है और अत्यंत सुंदर है। भीतर जाने के लिए जो दरवाजा है उसे स्वर्ग द्वार कहते हैं। आइए, हम स्वर्ग द्वार से अंदर चलें। भीतर 60 खंभे हैं। और यह देखो, रणछोड़रायजी की मूर्ति। काले पत्थर से बनी है। मूर्ति के चार हाथ हैं। एक में शंख, दूसरे में चक्र, तीसरे
में गदा और चौथे हाथ में कमल का फूल है मंदिर के इस भाग को निजमंदिर कहते हैं। बँटवारा करके हम मोक्ष द्वार से बाहर निकलेंगे। कितनी रोचक बात है। मंदिर में प्रदेश करना स्वर्ग में प्रवेश करने के बराबर माना गया है और मंदिर से बाहर निकलना मोच्ख प्राप्त करने के बराबरा
बाहर गोमती नदी बह रही है। उस के किनारे बहुत सारे मंदिर हैं। जन्माष्टमी के दिन इस नगरी की रौनक देखनी चाहिए। बड़ी धूमधाम से कृष्णजन्म मनाया जाता है। द्वारका में जगद्गुरु श्रीमद् शंकराचार्य की शारदापीठ है। उन्होंने भारत में चार मुग
मठों की स्थापना की थी। इनमें से एक द्वारका में है। यहाँ हिंदू धर्म की शिक्षा दी
है। दूर-दूर से लोग संस्कृत पढ़ने आते हैं। द्वारका से अब हम नाव में बैठकर शंखोद्वार द्वीप जाएँगे। यहाँ से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी है। इस द्वीप में शंखासुर नाम का एक असुर रहता था। श्रीकृष्ण ने उसका वध किया था। भगवान के हाथों से मृत्यु मिलना अर्थात् मोक्ष मिलना, इसलिए
इस द्वीप को शंखोद्धार-शंख का उद्धार कहते हैं। यहाँ भी एक कृष्ण-मंदिर है। द्वारका के पास नागेश्वर महादेव का मंदिर भारत के बारह बड़े ज्योतिर्लिंगों में गिना
जाता है। गोपी तालाब भी पवित्र स्थान है।
इस प्रकार द्वारका ऐतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। अब उद्योग के क्षेत्र में भी उसका विकास हुआ है। यहाँ सीमेन्ट का कारखाना है। कॉष्टिक सोडा और रसायन उत्पादन के कारखाने भी हैं। रासायनिक खाद भी बनाया जाता है।
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