Friday, 21 February 2025

हमारा गुजरात

चलिए सैर करने

अंधेरी रात थी। विशाल जंगल था। आकाश तारों से जगमगा रहा था। ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी। एक जीप में एक परिवार जंगल के पास के रास्ते से गुजर रहा था। अचानक खट-सी आवाज़ हुई और जीप रुक गई।

गीर के जंगल में शेर

कोई छोटा चालक बोला "अब क्या होगा? बीच जंगल में यह क्या मुसीबत आपढीनी उतर कर उसने जीप का बोनट खोला। इधर गाड़ी में दो बच्चे और उनके माता-पिता था गौर के मशहूर जंगल को छूते हुए वे एक गाँव से दूसरे गाँव जा रहे थे। यह गीर के नहीं था। 1,500 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए इस जंगल में कई प्रकार के प्राणी जाते हैं। यहाँ विश्वविख्यात सिंह, नीलगाय, हिरण, चीतल, सांबर, चौसिंगा और चिन्कारा हैं, जंगली सूअर तथा चीते और रीछ भी हैं।

जंगल के कारण जीव-जन्तुओं की छोटी-मोटी आवाजें हो रही थीं। जीप में सभी चुपचाप बैठे थे कि अचानक सिंह की दहाड़ सुनाई दी। सभी के दिल की धड़कन मानों पलभर के लिए रुक गई। चालक वहीं का रहने वाला था। वह डरा नहीं। जीप में बाबुभाई और रमाबहन तथा उनके बच्च्चे बाबुल और नीतु बैठे थे। उनका हौसला बढ़ाने के लिए वह बोला: "सिंह तो पशुओं का राजा होता है। उसे छेडो नहीं तो वह कुछ नहीं करता। आप घबराइए मत और यह लीजिए, गाड़ी भी ठीक हो गई।"

डर के मारे सिकुड़कर बैठे हुए बाबुभाई और रमाबहन कुछ स्वाभाविक हुए। बाबुल और नीतु तो अपने माता-पिता के सीने में सिर छुपाकर बैठ गए थे। जीप के चलते ही दोनों ने धीरे से सिर उठाया और एक-दूसरे को देखकर मुस्कराए। अब डर गायब हो गया था। दोनों ही सोच रहे थे कि स्कूल जाकर मित्रों से इस जंगल की और सिंह की बातें करेंगे।

बाबुभाई ने बच्चों को बताया कि सारी दुनिया में केवल दो ही देशों में सिंह हैं। एक अफ्रीका के जंगलों में और दूसरा भारत के इस गीर के जंगल में। भारतीय सिंह 2.75 मीटर लंबा होता है। अफ्रीका का सिंह उससे 30 से.मी. अधिक लंबा होता है। इस समय गीर के जंगल में सिंह, सिंहनी और उनके बच्चों को मिलाकर कुल आबादी लगभग 200 की है। वहाँ शिकार करना बिलकुल मना है। सिंह तो क्या, किसी भी प्राणी को नहीं मार सकते हैं।

बाबुल तो ये सब सुनकर अपने दोस्तों को सुनाने के लिए अधीर हो गया। दोस्तों को तो बहुत-सी बातें बतानी थीं। बाबुल, नीतु और उनके माता-पिता बंबई में रहते थे दीपावली की छुट्टियों में पूरा परिवार जीप में बैठकर गुजरात की सैर करने चला था। बंबई महाराष्ट्र की राजधानी है। उससे लगा हुआ उत्तर में गुजरात राज्य है। सन् 1960 की 1 मई के पहले तो गुजरात बंबई राज्य का ही हिस्सा था। बाद में वह अलग राज्य 
चलिए और करने

बना। गुजरात पश्चिम भारत में है। उसकी दाई ओर मध्यप्रदेश है और बौई और अरब सागर है। दक्षिण में महाराष्ट्र है और उत्तर की सीमा पर एक तरफ राजस्थान है और उसी से जुड़ा हुआ पाकिस्तान है।

गुजरात का समुद्र किनारा बहुत ही बड़ा, लगभग 1,600 किलोमीटर लंबा है। उस पर कुल मिलाकर छोटे-बड़े 40 बंदरगाह हैं। प्राचीन काल से यहाँ विदेशों से जहाज आया करते हैं और यहाँ से विदेशों में जाते रहते हैं। विदेशियों के आने से हमें काफी लाभ हुए हैं। व्यापार से होने वाले लाभ तो हैं ही, लेकिन एक-दूसरे के बारे में जानने का भी यह अच्छा अवसर होता है। दोनो देशों के विकास के लिए यह आवश्यक है। परंतु यदि हम सतर्क न हों तो विदेशियों के आगमन से नुकसान भी हो सकता है। भारत में हालैंड से डच, फ्रांस से फ्रांसिसी, पुर्तगाल से पुर्तगाली और इंग्लैंड से अंग्रेज आए। सभी ने व्यापार करना चाहा और फिर हम पर ही सवार हो गये। यह तो ऊँट और अरब की कहानी जैसा हुआ। ऊँट ने अरब से केवल अपना सिर छुपाने की जगह माँगी थी, फिर धीरे-धीरे पैर घुसा दिए, फिर शरीर और फिर वह पूरा का पूरा अरब के तंबू में घुस गया। अरब बेचारा बाहर। इन विदेशियों ने भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही किया। रोचक बात तो यह है कि दक्षिण गुजरात का सूरत शहर सभी विदेशियों को बड़ा पसंद आ गया। मुगलों की नजर उस पर इसलिए थी कि वे सूरत बंदरगाह से हज करने मक्का जाया करते थे। डच, फ्रांसिसी और पुर्तगालियों ने भी यहाँ अपनी कोठियाँ बना लीं। सन् 1612 में अंग्रेजों ने सूरत में व्यापार करने की सुविधाएँ माँगी और मुगल बादशाह ने मंजूरी दे दी। परिणाम यह हुआ कि सन् 1842 में जब अंतिम नवाब की मृत्यु हुई तब सूरत पूरी तरह से अंग्रेजों के हाथ में आ गया।

इस प्रकार भारत को गुलामी की ओर ले जाने का रास्ता गुजरात में खुल गया। यह सत्रहवी शताब्दी की बात है। इसी गुजरात के पोरबंदर नामक शहर में उन्नीसवीं सदी में एक व्यक्ति का जन्म हुआ, जिसने आज़ादी के आंदोलन का नेतृत्व किया। यह व्यक्ति थे मोहनदास करमचंद गांधी, जिनको हम महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं। काफी संघर्ष के बाद आखिर सन् 1947 में भारत आजाद हो ही गया। इस प्रकार देश की पराधीनता के इतिहास में जैसे गुजरात का नाम आता है, वैसे स्वाधीनता संग्राम के बयान में भी गुजरात आगे रहा है। जिस सूरत पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था उसी के आसपास का प्रदेश गांधी जी के सत्याग्रहों से विश्वविख्यात हो गया।

हमारा गुजरात

प्राचीन काल से आज तक गुजरात ने कई रंग देखे हैं। यहाँ कला और संस्कृति पनपे हैं। विज्ञान और यांत्रिकी का भी विकास हुआ है। समृद्ध लोकसाहित्य एवं लोककलाएँ हैं। आधुनिकतम विश्वविद्यालय हैं। कृषि उद्योग में प्रगति की हैं। उपग्रह संचार केन्द्र भी यहीं पर हैं। इस प्रकार, प्राचीन और अर्वाचीन संस्कृति का सुंदर मेल गुजरात में पाया जाता है। इसीलिए गुजरात की यात्रा बड़ी रोचक रहेगी।

तो फिर हम भी बाबुल-नीतु के साथ जीप में बैठकर पूरे गुजरात की सैर कर लेते हैं। लेकिन वे तो गीर के जंगल तक पहुँच गये हैं। आधे से भी ज्यादा गुजरात देख चुके हैं। हम भी वह सब देख लें जो उन्होंने देखा है और बाकी की यात्रा उनके साथ कर लें।

किसी नई जगह पर जाने से पहले उसके बारे में थोड़ी बातें जान लेना जरूरी है। इससे वहाँ की विशेषताओं को पहचानने में सरलता हो जाती है।

गुजरात राज्य के मुख्य तीन हिस्से हैं: गुजरात, सौराष्ट्र और कच्छ। कहा जाता है कि पाँचवी शताब्दी में हूण लोगों के साथ आये हुए गुर्जर लोग इस प्रदेश में बसे थे इसलिए यह गुर्जर-राष्ट्र और फिर गुजरात कहलाया। सुराष्ट्र याने अच्छा राष्ट्र कहलाने पर गुजरात का दूसरा हिस्सा सौराष्ट्र कहलाया। सौराष्ट्र में एक ज़माने में काठी कोम का वर्चस्व था, तब उसे काठियाबाड़ कहते थे। यह नाम आज भी प्रचलित है। कच्छ का प्रदेश पाकिस्तान के सिंध से जुड़ा हुआ है लेकिन एक समय ऐसा था जब उसके चारों ओर पानी था, जिसके कारण वहाँ काफी नमी रहती थी। नमीवाले प्रदेश को कच्छ कहते हैं। इस प्रदेश का आकार ऐसा है कि वह पानी में तैरते हुए कछुए जैसा लगता है। संस्कृत में कछुए को कच्छप कहते हैं। हो सकता है कि उसी से यह प्रदेश कच्छ कहलाया।

हम बंबई से चल रहे हैं, इसलिए सबसे पहले आएगा गुजरात, फिर सौराष्ट्र और उसके बाद कच्छ। सारा गुजरात प्रशासन की सुविधा के लिए 19 जिलों में बंटा हुआ है। यहाँ लगभग 18,700 गाँव हैं और एक लाख से अधिक की आबादी वाले ग्यारह शहर हैं। बंबई की ओर से गुजरात में प्रवेश करते समय सबसे पहले वलसाड़, डांग और सूरत जिले आते हैं।




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