पोरबंदर
जूनागढ़ जिले के उत्तर की ओर, समुद्र किनारे पर है पोरबंदर। इस बंदरगाह से प्राचीनकाल मैं अरबस्तान, अफ्रीका और ईरान के साथ व्यापार होता था। आज भी, बंदरगाह होने के कारण वह एक औद्योगिक शहर बन गया है। यहाँ साबुन, सीमेन्ट और रसायन के कारखाने हैं। तेल और कपड़े की मिलें हैं। "बॅकवोटर" होने के कारण, समुद्री तूफानों से गोदी बच जाती है, यह इसकी विशेषता है। पोरबंदर मशहूर होने का कारण ये उद्योग नहीं है और न ही इसका "बॅकवोटर" है। इस शहर के साथ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ जुड़ी हुई हैं। एक है प्राचीन और दूसरी अर्वाचीन। श्रीकृष्ण के बचपन के परममित्र थे सुदामा। यह नगरी उन्हीं की है। इसीलिए पोरबंदर का दूसरा नाम सुदामापुरी है। यहाँ सुदामा का मंदिर भी है। यह हुई प्राचीन बात।
और अर्वाचीन बात है गांधीजी से संबंधित। पोरबंदर में सन् 1869 में गांधीजी का जन्म हुआ था। आज वह मकान कीर्ति मंदिर कहलाता है। जिस कमरे में गांधीजी का जन्म हुआ था उसे तो देखना ही है। इसमें गांधीजी की वस्तुएँ और तस्वीरें रखी गई हैं। यहाँ एक पुस्तकालय है और इधर के विशाल कक्ष में कताई होती है। बालमंदिर और प्रार्थनाकक्ष भी है। गांधीजी के पिताजी पोरबंदर के राजा के दीवान थे। इसलिए जन्म के बाद कुछ वर्ष तक बालक मोहन पोरबंदर में ही थे।
गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा का जन्म भी पोरबंदर में हुआ था। लोग दूर-दूर से इस स्थान के दर्शन के लिए आते हैं। वैसे तो सारी दुनिया बड़ी सुंदर है। लेकिन कुछ स्थान
हमारा गुजरान
ऐसे होते हैं जो किसी विशेष कारण से महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं। अधिकतर ऐसा देखा गया है कि किसी महान व्यक्ति का जन्म, कर्म या मृत्यु किसी स्थान से जुड़े हों तो वह स्थान विख्यात हो जाता है। पोरबंदर गांधीजी का जन्म स्थान होने के कारण विख्यात हो गया, तो गुजरात की द्वारिका नगरी श्रीकृष्ण की नगरी बन गई, इसलिए विख्यात हो गई। समुद्र के किनारे ही अब हम पोरबंदर से द्वारका चलें। "द्वारिका" इसका प्राचीन नाम है।
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