Friday, 21 February 2025

जूनागढ़ के आसपास

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जूनागढ़ के आसपास

जूनागढ़ से दक्षिण में जाएंगे। लगभग 54 किलोमीटर की दूरी पर सासण-गीर जंगल है। यहीं वह अभयारण्य है जहाँ सिंह, चीतल इत्यादि बिना किसी डर के घूमते हैं। इसी जंगल के अंदर "तुलसीश्याम" नाम का गरम पानी का कुंड है। भगवान विष्णु के प्रतीक रूप एक बड़े श्यामरंगी पत्थर, जिसे शालीग्राम कहते हैं, का विवाह तुलसी के पौधे से किया गया था। इसीलिए यह स्थान तुलसीश्याम कहलाता है।

पास ही में भीम और कुंती का मंदिर हैं। एक कहानी ऐसी है कि पाँच पांडवों में जो भीम थे उन्होंने यहाँ अपनी माता कुंती की प्यास बुझाने के लिए हल का फाल मारकर धरती से पानी निकाला था। उन्हीं की स्मृति में यह मंदिर बनाया गया है।

अब हम समुद्र किनारे की ओर बढ़ रहे हैं। यह है चोरवाड़ा बहुत ही सुंदर स्थान है। जूनागढ़ के नवाबों ने यहाँ ग्रीष्म ऋतु में रहने के लिए विशाल महल बनवाया था। अब वह होटल बन गया है। इस समुद्र तट पर नारियल के बहुत से वृक्ष हैं। एक नारियल पीकर भी देखें। वाह, बहुत मीठा पानी है।

पास ही में मांगरोल है। मांगरोल विख्यात हो गया है "शारदा मंदिर" नाम के एक विद्यालय के कारण। कराची (पाकिस्तान) से आये हुए एक शिक्षाविद् स्वर्गीय मनसुखराम भाई ने विद्यालय शुरू किया था। विद्यालय की धरती पर पैर रखते ही पता चल जाता है कि यहाँ की बात ही कुछ ओर है। बहुत ही स्वच्छ स्थान है। रास्तों पर कंकड़ बिछे हैं।

चलने में कुछ तकलीफ होती है। पूछने पर पता चला कि इस प्रदेश में सांप बहुत हैं। ऐसे कंकड़ पर सांप तेजी से चल नहीं सकता, इसलिए रास्ते पर कंकड बिछा दिये गये हैं।

इसकी गौशाला भी देखने लायक है। सफाई तो ऐसी है जैसी अस्पतालों में होती है। दरवाजों पर फूलों की मालाएँ लगी हैं। बीचोबीच सुंदर रंगोली की गई है। अगरबत्तियाँ जल रही हैं। अब वाद्यों का मधुर संगीत सुनाई देता है। ऐसा वातावरण तैयार करने के बाद ही गाय को दुहा जाता है। मनसुखराम भाई कहते थे कि स्वच्छता, सुगंध और संगीत के कारण गायों का मन शांत और प्रसन्न रहता है वे अधिक दूध देती हैं। सच ही तो है। देखते-देखते कितनी बालटियाँ भर गई।

यहाँ, पास ही में दिव है। दिव, दमण और गोवा का जो संघीय क्षेत्र कहलाता है, उसमें से दमण हम दक्षिण गुजरात में देख चुके। दिव यहाँ सौराष्ट्र में है। ईरान से आये हुए पारसी पहले इसी दिव शहर में आये थे। बाद में यह पुर्तगालियों के हाथ में आ गया था।


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