4
डांग
हम समुद्र तट पर ही चलते रहें तो इस पथ से किसी दिन पाकिस्तान पहुँच जाएँगे और हमारा गुजरात-दर्शन अधूरा रह जाएगा। इसलिए अब समुद्र किनारे को छोड़कर हम जंगलों की तरफ चलते हैं। यह अनोखी ही दुनिया है। डांग के जंगलों में शेर, हिरन, चीतल, चीता, रीछ, खरगोश, मोर, तीतर इत्यादि पाये जाते हैं। डांग जिले के बद्रीपदा के लगभग 97 वर्ग किलोमीटर के जंगल को सरकार ने "अभयारण्य" घोषित किया है। "अरण्य" याने जंगल और "अभय" याने जहाँ के प्राणियों को शिकारियों से किसी प्रकार का भय न हो। जंगल के प्राणियों का यदि शिकार होता रहा तो एक दिन ऐसा भी आयेगा जब पृथ्वी पर कहीं जानवर ही नहीं होगा। ऐसी स्थिति पर्यावरण के लिये अच्छी नहीं मानी जाती।
इस अभयारण्य के बीच में से पूर्णा नदी बहती है और उसके उत्तर में गीरा तथा दक्षिण में खपरी नदियाँ हैं। सह्याद्रि पर्वतमाला का कुछ हिस्सा डांग जिले में हैं। समुद्रतल से लगभग 1,000 मीटर की ऊँचाई पर समतल जमीन है, जहाँ सापुतारा नाम का बहुत ही सुंदर स्थान है। सापुतारा याने साँप का निवास। यहाँ सर्पगंगा नदी के किनारे सांप की मूर्तियाँ बनाई गई हैं और डांग के आदिवासी उनकी पूजा करते हैं। इन आदिवासियों का डांगीनृत्य बड़ा मशहूर है।
डांग जिले का मुख्य शहर है आह्वा। यहाँ होली के त्यौहार के ठीक एक सप्ताह पहले डांग दरबार का मेला लगता है। आदिवासी मुखिया उत्सव के अनुरूप रंगीन कपड़े पहनकर खूब आग जलाते हैं। उसी के साथ आदिवासियों के कहालिया और तडपुर नाम के खास वाद्यों के साथ नृत्य होते हैं।
डांगी नृत्य
पूरे गुजरात में मई-जून के महीनों को छोड़कर साल भर मेले लगते रहते हैं और त्यौहार मनाये जाते हैं। इनकी गिनती करने बैठे तो लगभग पन्द्रह सौ मेले और दो हज़ार त्यौहार हो जाएँगे। हमारी यात्रा के दौरान भी हम कुछ मेले और कुछ त्यौहारों में हिस्सा ले पाएँगे।
No comments:
Post a Comment