धरती की शान
धरती की शान तू भारत की संतान,
तेरी मुट्ठीयो में बंद तूफ़ान है रे,
मनुष्य तू बड़ा महान है।।
तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे,
तू जो चाहे नदियों के मुख को भी मोड़ दे,
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को अंबर से जोड़ दे,
अमर तेरे प्राण,मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा में स्वयं भगवान है रे।।1।।
नैनों में ज्वाल, तेरी गति में भूचाल,
तेरी छाती में छिपा महाकाल हैं,
पृथ्वी के लाल तेरा हिमगिरी सा भाल,
तेरी भूकुटी में तांडव का ताल है,
निज को तू जान, जरा शक्ति पहचान
तेरी वाणी में युग का आह्वान है रे।।2।।
धरती सा धीर, तू हे अग्नि सा वीर,
तू जो चाहे तो काल को भी थाम ले,
पापों का प्रलय रुके, पशुता का शीश झुके,
तू जो अगर हिम्मत से काम ले,
गुरु सा मतिमान, पवन सा तू गतिमान,
तेरी नभ से भी ऊंची उड़ान है रे।।3।।
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