Friday, 28 May 2021

#जेनेवा_समझौता....जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है..।।मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी. इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई..।द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी. ।इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं... इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं..। साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है. जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए.।#जेनेवा_समझौते_की_मुख्य_बातें...★युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए. ★उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. ★साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी. ★जेनेवा संधि के तहत युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता. ★इसके अलावा उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता. ★इस संधि के मुताबिक युद्धबंदियों (POW) पर मुकदमा चलाया जा सकता है. ★इसके अलावा युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लैटाना होता है. ★कोई भी देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता. ★युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है.★युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्‍म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता.★किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है. (फिर चाहे वह स्‍त्री हो या पुरुष)

#जेनेवा_समझौता....

जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है..।।

मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी. इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई..।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी. ।

इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं... इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं..। साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है. 
जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए.।

#जेनेवा_समझौते_की_मुख्य_बातें...

★युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए.
 ★उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. 
★साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी. 
★जेनेवा संधि के तहत युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता. 
★इसके अलावा उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता. 
★इस संधि के मुताबिक युद्धबंदियों (POW) पर मुकदमा चलाया जा सकता है. 
★इसके अलावा युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लैटाना होता है. 
★कोई भी देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता. 
★युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है.
★युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्‍म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता.
★किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है. (फिर चाहे वह स्‍त्री हो या पुरुष)

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