Friday, 28 May 2021

#_क्या_है_देशद्रोह_कानून #_भारतीय_कानून_संहिता (आईपीसी) की धारा 124(A) में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक1. अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है2 . ऐसी सामग्री का समर्थन करता है,3. राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है,4. अपने लिखित या फिर मौखिक शब्दों, या फिर चिन्हों या फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है,तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है.#_कहां_से_आया_नियम"देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था. इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया.#_सैडीशन_लॉ_यानि_देशद्रोह कानून ब्रिटिश सरकार की देन है। आजादी के बाद इसे भारतीय संविधान ने अपना लिया।#_सबसे_पहले_इस्तेमाल:-1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल सरकार ने बालगंगाधर तिलक के खिलाफ किया था।1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में '#_यंग_इंडिया_नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था. यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था. बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह के मामले में केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी.केदारनाथ सिंह के केस पर #_सुप्रीम_कोर्ट की पांच जजों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था, 'देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.'2010 को बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर इस केस के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत मिल गई थी.2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी को उनकी साइट पर संविधान से जुड़ी भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया. यह कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे. 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी.हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार से पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था.#_धारा_को_हटाने_की_मांग_क्योंदेशद्रोह के कानून को लेकर संविधान में विरोधाभास भी है, जिसे लेकर अक्सर विवाद उठते रहे हैं।दरअसल, जिस संविधान ने देशद्रोह को कानून बनाया है, उसी संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया गया है।मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता इसी तर्क के साथ अपना विरोध जताते रहे हैं और आलोचनाएं करते रहे हैं।#_मानवाधिकार_कार्यकर्ताओं का कहना है कि देशद्रोह से जुड़े कानून की आड़ में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करती है.#_अंतरराष्ट्रीय_स्तर पर भी इस कानून की कड़ी आलोचना होती रही है और इस बात पर बहस छिड़ी है कि अँग्रेज़ों के ज़माने के इस क़ानून की भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जगह होनी भी चाहिए या नहीं.

#_क्या_है_देशद्रोह_कानून 

#_भारतीय_कानून_संहिता (आईपीसी) की धारा 124(A) में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक
1. अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है

2 . ऐसी सामग्री का समर्थन करता है,

3. राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है,

4. अपने लिखित या फिर मौखिक शब्दों, या फिर चिन्हों या फिर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नफरत फैलाने या फिर असंतोष जाहिर करता है,

तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है.

#_कहां_से_आया_नियम"

देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था. इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया.
#_सैडीशन_लॉ_यानि_देशद्रोह कानून ब्रिटिश सरकार की देन है। आजादी के बाद इसे भारतीय संविधान ने अपना लिया।

#_सबसे_पहले_इस्तेमाल:-
1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल  सरकार ने बालगंगाधर तिलक के खिलाफ किया था।

1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी के खिलाफ वीकली जनरल में '#_यंग_इंडिया_नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया था. यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था.

 बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में राज्य सरकार ने एक भाषण के मामले में देशद्रोह के मामले में केस दर्ज किया था, जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी.
केदारनाथ सिंह के केस पर #_सुप्रीम_कोर्ट की पांच जजों की एक बेंच ने भी आदेश दिया था. इस आदेश में कहा गया था, 'देशद्रोही भाषणों और अभिव्यक्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े.'

2010 को बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर इस केस के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत मिल गई थी.

2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी को उनकी साइट पर संविधान से जुड़ी भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया. यह कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे.

 2012 में तमिलनाडु सरकार ने कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी.

हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार से पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले तहत गिरफ्तार किया गया था.

#_धारा_को_हटाने_की_मांग_क्यों

देशद्रोह के कानून को लेकर संविधान में विरोधाभास भी है, जिसे लेकर अक्सर विवाद उठते रहे हैं।

दरअसल, जिस संविधान ने देशद्रोह को कानून बनाया है, उसी संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया गया है।

मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता इसी तर्क के साथ अपना विरोध जताते रहे हैं और आलोचनाएं करते रहे हैं।

#_मानवाधिकार_कार्यकर्ताओं का कहना है कि देशद्रोह से जुड़े कानून की आड़ में सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार करती है.

#_अंतरराष्ट्रीय_स्तर पर भी इस कानून की कड़ी आलोचना होती रही है और इस बात पर बहस छिड़ी है कि अँग्रेज़ों के ज़माने के इस क़ानून की भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जगह होनी भी चाहिए या नहीं.

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