Saturday, 24 November 2018

વાર્તા નદી અને સમુદ્ર

#अभिमान_और_विनम्रता
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एक बार नदी को अपने पानी के प्रचण्ड प्रवाह पर घमण्ड हो गया ।🍃❗️ नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ । 🍃❗️

एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अन्दाज में समुद्र से कहा - "बताओ ! मैं आपके लिए क्या लेकर आऊँ ? मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ ।"🍃❗️

  समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है । इसलिए उन्होंने नदी से कहा -
"यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना ही चाहती हो तो थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ ।"🍃❗️

नदी ने कहा - "बस, इतनी सी बात ! अभी लेकर आती हूँ ।" नदी ने अपने जल से पूरा जोर लगाया, पर घास नहीं उखड़ी । नदी ने बहुत बार प्रयास किया, लेकिन असफलता ही हाथ लगी ।🍃❗️

आखिरकार नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली - "मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ, मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ तो घास नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ ।"🍃❗️

समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और फिर मुस्कुराते हुए कहा - "पगली ! जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं । किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचण्ड आँधी-तूफान या प्रचण्ड वेग भी नहीं उखाड़ सकता ।"🍃❗️

जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाईयाँ लड़ना नहीं, बल्कि उन से बचना है । कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है । क्योंकि अभिमान फरिश्तों को भी शैतान बना देता है और विनम्रता - साधारण व्यक्ति को भी फरिश्ता बना देती है ।🍃❗️

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